टूटा हुआ अंदर से खेल देखता है, लेकिन तमन्ना दिल की तो उसको ही पता है,
हंसता हुआ जो आया रुला के अब गया है,
होता है दिल यह नाजुक एक बार टूटता है।
रहता है खाम अब वो ना बोलता किसी से,
छुपी जो शाधी उसने सब कुछ बता रही है,
नेत्र नीर बहते उसके खुद साफ कर रहा है,
होता है दिल यह नाजुक एक बार टूटता है।
मुस्कुराया था जो दिन भर खुशी ना दिखती है अब,
रहता अकेला अब तो सब तोहीद कर रहा है,
दिल लगी पड़ी है महंगी अब सब समझ रहा है,
होता है दिल यह नाजुक तो बार टूटता है।
सोचता है छोड़ो दुनिया आत्मघाती कर रहा है,
अब तो शुध में उसकी खुद भी जा रहा है,
लेकिन समझ ले ओ बैरी तेरी मां कितना तड़पेगी,
आएगी याद तेरी तो रोते वह रहेगी, होता है दिल यह नाजुक एक बार टूटता है।
विवेक उनियाल
(अबोध)
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