राज्य में पलायन रोकने के दावे तो खूब हो रहे हैं, लेकिन पहाड़ों के खाली और जनशून्य होते गांव, बंजर खेत और वीरान होती बाखलियां सिस्टम की उदासीनता और अनदेखी की कहानी बयां कर रही हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है राज्य गठन के बाद अल्मोड़ा संसदीय सीट पर चारों जिलों अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत में 269 गांव पूरी तरह से जनशून्य हो चुके हैं। कभी ये गांव महिलाओं, बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों की चहलकदी से गुलजार रहते थे जो अब वीरान हो चुके हैं।पलायन रोकने के दावे तो खूब हो रहे हैं, लेकिन पहाड़ों के खाली और जनशून्य होते गांव, बंजर खेत और वीरान होती बाखलियां सिस्टम की उदासीनता और अनदेखी की कहानी बयां कर रही हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है राज्य गठन के बाद अल्मोड़ा संसदीय सीट पर चारों जिलों अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत में 269 गांव पूरी तरह से जनशून्य हो चुके हैं। कभी ये गांव महिलाओं, बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों की चहलकदी से गुलजार रहते थे जो अब वीरान हो चुके हैं।
अल्मोड़ा जिला इस संसदीय सीट का केंद्र रहा है। इस संसदीय सीट से जीते नेताओं ने केंद्र से लेकर प्रदेश की सत्ता में अपना दबदबा कायम रखा। हैरानी की बात यह है कि पलायन के लिहाज से इस जिले के नाम कुमाऊं के अन्य जिलों में सबसे ऊपर दर्ज है। पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार कुमाऊं के जिलों में अल्मोड़ा में सबसे अधिक पलायन हुआ है।
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