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शहरों से गायब गौरैया घर-आंगन में नहीं सुनाई देती गौरैया की चहचहाहट

शहराें में पक्के मकान बनने से अब घर-आंगन में गौरैया का चहचहाहट नहीं सुनाई देती। शहरों से गौरैया विलुप्त सी हो गई है। इसके पीछे पक्के मकानों में उनके लिए जगह नहीं है। गुरुकुल कांगड़ी विवि हरिद्वार के सर्वे में ऋषिकेश और हरिद्वार शहर में गौरैया की संख्या को बेहद कम हो गई है। गांवों में सुबह-सुबह गौरैया का झुंड घरों की दहलीज तक पहुंच जाते थे। गौरैया की चहचहाहट से सुबह की शुरुआत होती थी। लेकिन अब गांवों में पक्के मकानों का प्रचलन होने, आधुनिक डिजायनों के मकानों का निर्माण होने से गौरैया के रहने के लिए स्थान रोबा, आला नहीं छोड़ा जाता। जिससे गौरैया उस मकान में घोंसला नहीं बना पाती। गौरैया को कच्ची गोशाला में अपना घोंसला बनाना पड़ता है। वहीं शहराें में जिन क्षेत्रों में पक्के मकानों का निर्माण हुआ है उन क्षेत्रों से गौरैया भी विलुप्त की कगार पर पहुंच गई। हरियाली कम होने से भी गौरैया आबादी में नहीं रह पाती है। पक्षी वैज्ञानिक बताते हैं कि गौरैया पानी में पनप रहे मच्छरों के लार्वा और हवा में उड़ रहे मच्छर को भी खाती है। यदि शहरी क्षेत्रों में गौरैया के रहने के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराया जाएं तो गौरैया की संख्या बढ़ सकती है। गौरैया की संख्या बढ़ेगी तो मच्छरों का लार्वा नहीं पनपेगा, जिससे डेंगू और चिकनगुनिया की बीमारी से भी निजात मिलेगी।
ऐसे करें गौरैया का संरक्षण हम अपने घर में प्लाई या लकड़ी का बाक्स बनाकर उसमें डेढ़ इंच व्यास का होल बनाकर मकान के टॉप वाले कोने पर लटका सकते हैं। घोंसला ऐसी जगह पर लगाना चाहिए जहां पर सीधे सूर्य की किरण और बारिश की बौछार भी न पड़े। जमीन से करीब आठ फीट ऊंची जगह पर गौरैया का घोंसला लगाया जाना चाहिए। घोंसला के आसपास ऊंची जगह पर पानी और बाजरा रखना चाहिए।

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