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बद्रीनाथ धाम से जुड़ी अनोखी परंपरा एवं मान्यता: धाम के कपाट खोलने व बंद होने से पहले स्त्री वेश में आते हैं पुजारी

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) से कई परंपराएं और चौंकाने वाली मान्यताएं जुड़ी हैं. 

Source:-  Google Source

ऐसी ही एक परंपरा है मुख्य पुजारी का साल में दो बार चूड़ी, बिंदी पहन कर स्त्री वेश धारण करना. इतना ही नहीं, साज सज्जा के बाद ही पुजारी मंदिर में प्रवेश करते हैं. बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु अपने 24 स्वरूपों में से एक ‘नर-नारायण’ रूप में विराजमान हैं. मंदिर में भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर और उद्धव के विग्रह भी विराजित हैं. धाम के कपाट अप्रैल के महीने खोले जाते हैं. वहीं नवंबर में शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं. कपाट खुलते और बंद होते समय दक्षिण भारत से आए मुख्य पुजारी (रावल) को स्त्री वेश धारण करना पड़ता है. 

कपाट बंद होने की प्रक्रिया लगभग पांच दिन तक चलती है. इस दौरान भगवान गणेश, आदिकेदार, खड्ग पुस्तक और महालक्ष्मी की पूजा होती है |

हिंदू परंपरा के अनुसार, जेठ के सामने बहू नहीं आती है, इसलिए मंदिर से उद्धव जी के बाहर आने के बाद ही माता लक्ष्मी मंदिर में विराजित होती हैं. माता लक्ष्मी की विग्रह डोली को पर पुरुष (पराया पुरुष) न छुए, इसलिए मंदिर के पुजारी माता लक्ष्मी की सखी अर्थात स्त्री रूप धारण कर माता के विग्रह को उठाते हैं.

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